
जिस जगह से उजाला फैलना चाहिए, वहाँ अंधेरा बिकने लगा। गुरुवार को गोरखपुर यूनिवर्सिटी में एक अधीक्षक साहब—बृजनाथ सिंह—को एंटी करप्शन टीम ने रंगे हाथों रिश्वत लेते हुए पकड़ लिया।
महाविद्यालय की मान्यता के लिए उन्होंने जो फीस तय की थी, वह सरकारी नहीं, “गोपनीय” थी—₹50,000 नगद।
घूस की गुगली: मान्यता चाहिए? तो चढ़ाओ दक्षिणा!
शिकायतकर्ता संदीप कुशवाहा (भरपटिया, कुशीनगर निवासी) ने बताया कि उनके कॉलेज – वैष्णवी महिला महाविद्यालय – की मान्यता और एक सह-आचार्य की नियुक्ति के नाम पर बृजनाथ ने 50 हजार की डिमांड रखी थी।
लगता है यूनिवर्सिटी में अब “नॉलेज ट्रांसफर” के साथ-साथ “कैश ट्रांसफर” की भी व्यवस्था है।
एंटी करप्शन का एक्शन: चुपके से कैमरा, सीधे धरपकड़
टीम ने प्लानिंग की, साक्षीगण जुटाए, और गुरुवार 2:34 बजे जब संदीप ने बृजनाथ को पैसे थमाए—ऑपरेशन ट्रैप सफल रहा।
घूस की रकम मौके पर बरामद, सील, और साहब सीधे कैंट थाने के मेहमान बन गए।

कैंपस में हड़कंप: “सर, क्या अब डिग्री भी बोली लगाकर मिलेगी?”
जैसे ही गिरफ्तारी की खबर फैली, यूनिवर्सिटी के गलियारों में गर्म हवा चल पड़ी। कर्मचारी दबी ज़ुबान में बोले, “हम तो कहते थे, लेकिन कोई सुनता ही नहीं था…” और छात्र? वो सोच में पड़ गए- “अब पढ़ाई करें या पेमेंट का इंतजाम?”
आरोपी की प्रोफाइल: ‘बांध’ गांव से रिश्वत के ‘सैलाब’ तक
बृजनाथ सिंह, मूल निवासी – पिपरा बांध, देवरिया, वर्तमान पता – सिद्धार्थ इन्क्लेव, तारामंडल, गोरखपुर। परिवार को भी नहीं पता होगा कि ‘सिद्धार्थ’ नाम की कॉलोनी में रहकर ‘लोभ’ की परीक्षा में फेल हो जाएंगे। प्राथमिक पूछताछ में कई “संभावित पार्टनर” और दस्तावेज़ीय साक्ष्य सामने आए हैं। मामले की तह तक जाने के लिए टीम पूरी तरह सक्रिय है।
शिक्षा का नया स्लोगन: “Pay First, Learn Later.” अब कॉलेज में दाखिले से ज़्यादा इम्पॉर्टेंट है… “किसको पकड़ाया?” यूनिवर्सिटी का नया कोर्स: ‘Rishwatology – 101’
अंत में सवाल उठता है…
क्या ऐसे मामलों में सिर्फ मछली पकड़ी जाती है या पूरा तालाब भी साफ़ होगा? शिक्षा को अगर धंधा बनने दिया गया, तो कल पढ़ाई नहीं, सिर्फ रसीदें रह जाएंगी।
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